Monday 21 May 2012

LOVE STORY.......

Love story .. part 1 
BY: ASMITA BHAVESH SHARMA

ये उन दिनों की बात है जब हमारे पापा का ट्रान्सफर हुआ था.. वो शहर एकदम नया ,, माहोल भी नया,, और लोग भी,,, पुराना शहर ,,अपना,, घर ,,अपना स्कूल,, और अपने फ्रेंड्स को हम बहुत मिस कर रहे थे,,,, बस एक बात अच्छी  थी ,, हमे पढने का बहुत शौक़ हुआ करता था,, और हमारे पापा के पास बहुत ही उम्दा किताबें हुआ करती थी,, हम बस अपनी  छुट्टियों को उन्ही किताबों को पढ़कर स्पेंड करने लगे,, "नटरंग" का पापा के पास बहुत संग्रहण हुआ करता ,,और उसमे नाटक के मंचन की बहुत रेयर तसवीरें भी हुआ करती थी,,, शायद हमारे स्वप्न-लोक में रहने का एक कारण किशोरावस्था में पढ़ी हुई वो कहानियां ही हों ,,बहरहाल समय अपनी उसी गति से बढ़ता रहा ,,उसे किसी के तनहा होने या अपने दोस्तों को छोड़ने के दर्द से क्या,,, पापा-मम्मी हमारे नए घर की सजावट में व्यस्त  थे  और उनको भी हमारे गम का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था....कभी बातें करते भी तो बस हमारे नए  एडमिशन की और उस छोटे से शहर में अच्छा सा स्कूल ढूंढने की ,, मन तो करता उनको कहें " अगर ये जगह इतनी ही बुरी है तो हमे वहीँ क्यों न छोड़ आये,,पुराना स्कूल कितना बड़ा था और टीचर्स  सभी हमे कितना प्यार करते थे,, और हमारे फ्रेंड्स जो हमे कितना मानते थे,,, पर हमारी बात सुनने की फुर्सत ही किसे थी..
 हमे उस शहर में अभी १५ दिन ही हुए थे की हमारी सामने वाली पड़ोसन मम्मी से मिलने आई.. मम्मी से यहाँ वहां की बातें करने लगी,, और बड़े ही ताज्जुब से कहने लगी की अरे आपकी बस १ ही लड़की है,, १ लड़का और कर लेते ,, मम्मी ने हमेशा की तरह उनको कह दिया की देना होता तो भगवान ने पहले ही एक लड़का दे दिया होता ,,जो तब नहीं दिया ,उसके लिए अब सोच कर परेशां क्यों होना ,, आंटी जी कहने लगी वो तो ठीक है लेकिन इसको इतना पढ़ाने की क्या ज़रूरत है, दिन भर पता नहीं कौन सी किताबों में सर खपाई करती रहती है,, कुछ घर का काम आता है या नहीं इसको,, वो सब सिखाइए ,,जी में आया कह दें की आंटी जी आप हैं न इतनी अच्छी , आप ही आ जाइएगा ,, लेकिन जवाब मम्मी ने दिया ,, मम्मी ने कहा नहीं जी मेरी बेटी बड़ी होनहार है,, सब आता है उसको,, अब नौकरी में तो अकेले ही रहना होता है ,, ये नहीं करेगी तो कौन करेगा,,आंटी ने पता नहीं समझा या नहीं, बस मम्मी को सब बताने लगी , राशन की दूकान ,, दूध वाला, और बहुत सारी घर -गृहस्थी की बातें,, मम्मी भी सब बड़े ही ध्यान से सुनने लगी, फिर आंटी से बोली की " मेरी बेटी को एक दिन सब दिखा लाइए,, काम तो इसी क करना है न,," ... आंटी जी जो मेरे लड़की होने से वैसे ही चिढ़ी हुई थी , चौंक गयी ,, अरे इसको क्यों भेजोगी, मेरा बेटा है न ,, वो सब कर देगा ,, मम्मी ने कहा "आप क्यों तकलीफ करती हैं उसी को कह दो की शाम  को ही इसको ले जाकर सब दिखा दे,, आंटी ने अनमने मन  से हाँ कर दी .........................................  
शाम हुई और मैं दिन की बातें भूल चुकी थी,,, आंटी जी को अच्छा लगा हो या नहीं लेकिन शाम को उनका बेटा हमारे घर आया, और हम दोनों एक साथ आंटी जी की बताई हुई जगह पर गए,,,, उसकी रेंजर साइकिल और मेरी लेडी बर्ड साइकिल में चलते हुए हमने उस दिन बहुत सारे काम किये घर के,,,वो अपने बारे में मुझे बहुत कुछ बताता जा रहा था और मैं भी सुनती जा रही थी,, वो छः  भाइयों में सबसे छोटा था ,,और बहुत लाडला होगा ऐसा मुझे उसकी बातों से लगा,, मैंने तभी पहली बार गौर किया की वो कितना खूबसूरत था,,, शाम के डूबते हुए सूरज की हलकी रौशनी में खिले हुए पूर्णिमा के चाँद जैसा,, चलती हुई साइकिल में उसके बाल जब हवा से उड़ते ,,तो एक अजीब सी सिरहन महसूस की मैंने ,,,,, अनजानी ,,,अजनबी सी एक भावना,,, शायद ये वही पहली नज़र थी जिसे लोग प्यार कहते हैं,,,वो भले ही मुझसे बड़ा था ,, लेकिन उसका मन किसी निर्मल नदी के प्रवाह की तरह स्वच्छ ,, वो मेरी भावनाओं को क्या समझ पाया होगा,,, और वैसे भी कहते हैं की  लडकियां ऐसी बातों को ज्यादा जल्दी से भांप लेती हैं ,,,हम उस रोज़ घर तो आ गए थे ,, लेकिन मेरा मन उसी साइकिल राइड में भटकता रहा ,,,उस दिन से लेकर बाद के कई सालों तक,,,मम्मी शायद जो इन बातों से अनजान थी,, हमेशा की तरह मेरी दिल की भावनाओं को पढना उसने ज़रूरी नहीं समझा था ,, अगले दिन मुझसे कहने लगी की कालोनी में जो  मेरी उम्र के बच्चे हैं ,,मैं उनके साथ घुल-मिल जाऊं ,, तो मुझे भी इस नयी जगह में अच्छा लगने लगेगा,, लेकिन मम्मी को क्या पता था की मुझे तो ये नया शहर वैसे भी अच्छा लगने लगा था,,  नया शहर और नए शहर के लोग मुझे और नए लगने लगे थे,,,मैनें मम्मी की बात मानकर  बाहर जाना शुरू किया ,,,लेकिन वहां की लड़कियां मुझसे कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करतीं थीं ,, तब वही मेरे पास आकर बैठता और हम बहुत साड़ी बातें करते,, उसने मुझे बताया की मैं जो घर पे पढ़ती रहती हूँ वो उसको बहुत अच्छा लगता है,, और उसी ने मुझे बताया की ये छोटा शहर है न इसलिए यहाँ के लोगों की सोच थोड़ी सी अलग है ,,और लड़कियां मुझसे जलती हैं,, मेरे कपडे पहनने के तौर तरीके भी यहाँ बहुत लोगों को पसंद नहीं आते,, उसने कहा  तुम कुछ भी करो इसमें कोई बुरे नहीं लेकिन लोगों को अगर तुम्हारे बारे में कोई ग़लतफहमी हो जाये तो इसमें बुराई ज़रूर है,,,मेरे कपड़ों के बारे में उसने जो कहा सच कहूँ तो एक लड़की होने का एहसास मुझे उसी वक़्त हुआ.. वो धीरे- धीरे मेरे हर  पहले एहसास में शामिल हो गया और उसका हिस्सा बन गया...............


दिन अब बहुत अच्छे गुजरने लगे ,, मैं जब अपनी छत पर पढने जाती वो भी अपने छत पर आ जाता ,, अपनी छत से आम,अमरुद,अनार, सब तोड़कर वो मेरे छत पर फेंकता,,, कभी अपने कबूतर उड़ाकर मेरे पास भेज देता,, तो कभी मुझे कौरव-पांडव के फूल देता ,,, अजीब सा रिश्ता था उसका और मेरा,, हम दोनों सबसे अच्छे दोस्त थे,, बिना स्वार्थ और किसी बुरी भावना के हम अपनी सारी बातें एक दुसरे को बता दिया करते,, बहुत ही साफ़ और प्यारा सा एक रिश्ता ......उसी साल मुझे मलेरिया हो गया ,,मैं बहुत घबरा गयी ,, पता नहीं मैं एक्साम्स में क्या करुँगी ,,एक्साम्स में सिर्फ दो ही महीने बचे थे ,, और क्लास की पढाई,, रोज़ दिए जाने वाले नोट्स ,,सब कुछ करना ,, मैं कैसे कर पाऊँगी,, वो रोज़ घर आता ,,मुझे कालोनी की पूरी खबर देता,, कहता की लड़कियां अभी खुश हैं की तुम बीमार हो और घर से बहार नहीं जा रही हो,,मैंने पूछा और तुम ,, उसने कहा मैं खुश नहीं हूँ , तुम्हारे इस साल बोर्ड के एक्साम्स हैं,, और अगर तुमको डॉक्टर बनना है तो तुम्हें इस साल अच्छे नंबर से पास होना ही होगा ,, नहीं तो तुम्हारा पूरा साल खराब हो जायेगा,, मैंने कहा की इतनी बिमारी मैं स्कूल जा ही नहीं सकती,, और इस शहर में कोई प्राइवेट ट्यूटर भी नहीं जो घर आकर मुझे पढ़ा दे,, उसने कहा की तुमको किसी ट्यूटर की ज़रूरत ही क्यों है,, मैं स्कूल जाकर तुम्हारे नोट्स उतार लाऊंगा,, और तुम घर पर ही तैयारी कर लेना,, उसने अपना वादा निभाया,, और मैंने उस साल बहुत अच्छे नंबर से एक्साम्स पास किये,, घर पर अब मेरे आगे की पढ़ाई की बात होने लगी थी,, मुझे किसी अच्छे जगह से कोचिंग करनी चाहिए और ध्यान लगाकर पढना चाहिए,, सबने मिलकर फैसला ले लिया ,, मुझसे किसी ने एक बार भी नहीं पूछा,, बस मैं भी अपनी भावनाओं को दबाये हुए जाने की तैयारी में लग गयी,, उसने हमेशा की तरह मेरी उस समय भी बहुत मदद की,, और जैसे समय हमेशा कुछ अच्छा होने पर धीरे -धीरे बीतता है,, जैसे चाह रहा हो की हम जी भर कर उस ख़ुशी की अनुभूति कर लें,,और कुछ बुरा होने पर बहुत जल्दी बीत जाता है,, जैसे जल्दी गुज़र जायेगा तो दर्द की वो संवेदना भी जल्दी ही गुज़र जाएगी,, बस कुछ महसूस नहीं होगा,, वैसे ही वो दिन भी आ ही गया,, मम्मी ने बहुत अच्छा सा टिफिन बनाया ,,नयी जगह के लिए चिवड़े ,,सुहाली,,नमकीन अलग अलग नाश्ता बना कर दिया,, और फिर ट्रेन का टाइम होने पर हम स्टेशन भी पहुँच गए,, लेकिन आज वो सवेरे से कहीं दिखा नहीं था मुझे,, न घर आया,, न अपने घर पर दिखा,, मेरे दिल का दर्द और बढ़ गया,, अगर उसे देख कर जाती तो शायद कम दुखी रहती ,,पर न जाने आज वो कहाँ था,, ....................................
हम घर से निकल कर स्टेशन पहुँच गए थे,, ट्रेन के आने में कुछ वक़्त था,, मम्मी-पापा दोनों हमें नयी जगह में एडजस्ट कैसे करना यही सब बता रहे थे,, किसी का ध्यान इस बात पर नहीं था की मैं भी कुछ सोच सकती हूँ ,, मेरे कोई और ख्याल हो सकते हैं,,और सबसे ज्यादा मैं कितना दुखी थी,, उस अजनबी शहर से दूर जाने पर,,और ये की अब न ही ये शहर और न ही इसके लोग मेरे लिए अजनबी थे,, किसी को मेरी भावनाओं की ज़रा भी चिंता नहीं थी,,तभी मुझे स्टेशन के गेट पर वो दिखा,,उसकी आँखें जैसे बेताबी से किसी को खोज रहीं थी,, वो मुझे उस भीड़ में नहीं देख पा रहा था,,लेकिन क्यूंकि मेरी नज़रें उसकी आस लगाये सिर्फ गेट पर ही थीं ,,मैंने उसको देख लिया था,,मैं पापा को कोई मागज़ीने खरीद लेती हूँ ये कह कर बुक स्टाल तक गयी,, उसने भी मुझे देख लिया,,वो पास आया ,,तो मैं उसको चिल्ला पड़ी ,,जिन भावनाओं को मैंने इन सालों में दबा रखा था,,वो आंसूं बन कर अब बहने लगे थे,, मैंने उसको पूछा "कहाँ थे तुम अब तक,, घर पर नहीं आये,,तुमसे बिना मिले मैं चली जाती तो तुम्हे बुरा नहीं lagta",,उसने कहा "बुरा तो लगता ,,पर मैं तुम्हे अलविदा नहीं कह सकता था,,तुम्हे अपने से दूर नहीं भेज सकता था" और उसकी आँखों में भी आंसूं आ गए,,"" पता नहीं कब से ऐसा हुआ ,,शायद उस पहले ही मुलाक़ात से ,,या उससे पहले जब तुम अपने कमरे में किताबें पढ़ रही होती,, और मैं अपनी छत से तुमको देखा करता ,,लेकिन मैं तुम्हें बहुत पसंदकरने लगा था,, पर कभी तुमसे कुछ कहने की हिमात नहीं हुई,, मुझे लगा की अगर मैंने तुमसे कुछकहा तो शायद हमारी ये दोस्ती भी खो दूंगा,,लेकिन अब जब तुम जा रही हो तो मुझसे चुप नहीं रहा गया ,, अगर आज तुम बिना कुछ सुने चली जाती तो मैं शायद फिर तुमसे कभी नज़रें नहीं मिलापाता ,, तुम ये मत समझना की मैं हमारी दोस्ती का फायदा उठा रहा हूँ ,, लेकिन ये सच है की मेरीतुम्हारे लिए यही भावना है,, और मैंने तुमसे अच्छी कोई लड़की कभी नहीं देखी,, तुम इतनीखूबसूरत हो,, इतनी होशियार हो,, मैं जानता हूँ मैं कहीं से तुम्हारे लायक नहीं हूँ ,, और तुम्हें ज़िन्दगी में बहुत ऊँचा मुकाम पाना है ,, मैं चाहता हूँ की तुम बहुत पढो,, कुछ करो,, मैं तो घर के माहौल की वजह से कुछ कर नहीं पाया ,, लेकिन तुमको कुछ कर दिखाना है,, अपने पापा के लिए,, और उन लोगों के लिए जो समझते हैं की लड़कियां ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर सकती "मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा की मैं भी तुम्हे बहुत पसंद करती हूँ ,, पहली बार जब हम साथ गए थे तब से,, लेकिन कभी तुम्हें कुछ कहने की हिमात नहीं कर पाई,, लेकिन आज अगर तुमसे मिले बगैर और अपने दिल की बात किये बगैर चली जाती तो मैं ज़िन्दगी भर अपने आप से नज़रें नहीं मिला पाती"
फिर मेरी ट्रेन आयी और मैं अपने नए सफ़र के लिए निकल गयी,,दो साल की कोअचिंग करने के बाद मेरा एडमिशन अच्छे मेडिकल कॉलेज में हो गया,, ज़िन्दगी यूँ ही आगे बढती रही,, तब न तो कोई फ़ोन हुआ करते ,,न इन्टरनेट और न ही मोबाइल " और हम एक दुसरे को कभी ख़त भी नहीं लिख पाए,,पापा का ट्रान्सफर भी फिर किसी नयी जगह में हो गया,, हम कभी उस शहर वापस नहीं जा पाए,, न ही उस दिन के बाद उस से मिल पाए ,,, ज़िन्दगी यूँ ही गुज़रती रही,, लेकिन फुर्सत के पलों में आज भी उस अजनबी दोस्त को याद कर लेते हैं ,,,,बस अब उसके साथ यादों का अटूट नाता जोड़ लिया है हमने,,

 हमारी शादी हुई ,,बहुत अच्छी और सफल गृहस्थी रही हमारी,, वो हमेशा मेरे लिए वही बचपन का साथी रहा,, आज बेटा और बेटी अपने जीवन में व्यस्त हैं ,,सब के बाल-बच्चे हो गए हैं,, हम अपने नाती-पोतों में व्यस्त रहते हैं,, ज़िन्दगी बहुत खुशहाल रही,,और मुझे ख़ुशी है की मुझे इतना अच्छा साथ मिला,,बस इसलिए आज आपसे अपनी ये छोटी सी कहानी शेयर कर रही हूँ,,..................................
आज भी महसूस करती हूँ ,,ठंड की उस गरम दोपहर को मैं ,,

जब भी दोपहर में उस छत पर जाती,,तेरा उन परिंदों को मेरे छत पर भेजना,,
उनकी पंखों में तेरी उड़ान को ,,महसूस किया मैंने,,

वो तेरा पेड़ से तोड़, अमरुद ,,अनार,,मेरे दामन में देना,,
उनके स्वाद में तेरे लबों को ,,महसूस किया मैंने,,

वो स्कूल के रास्ते में,,तेरा आकर मुझे "कौरव-पांडव" के फूल देना,,
उनकी खुशबू में तेरी सांसों को ,,महसूस किया मैंने ,,

वो सावन के झूले,,जो तुने आम के बागीचे में लगाये थे,,
उसमें झूलते हुए तेरे साथ को,, महसूस किया मैंने,,

वो शादियाँ जो मोहल्ले हुआ करती थी,,
तब क्या कहूँ क्या क्या ,,महसूस किया मैंने,,

वो तेरा रंग लगाना,,मेरे रुखसारों पर,,
आज भी तेरे हांथों का स्पर्श,,महसूस किया मैंने,,

जब भी रोई हूँ मैं तन्हाई में,,
तेरी दो नज़रों को अपने चेहरे पर,,महसूस किय मैंने,,

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