Sunday 20 May 2012










बड़ी खूबसूरत ख़ता कर गए हैं ..........
मेरे प्यार की इब्तदा कर गए हैं .....

फिज़ाओं में रक्सां हैं उल्फ़त के नग्में.....
मेरी ज़िन्दगी खुशनुमा कर गए हैं .......

जिधर देखती हूँ उधर तू ही तू है ..........
मुहब्बत की अब इन्तेहाँ कर गए हैं .......

मेरी बेकरारी की हद को न पूछो .........
वो चश्मे -जवां जबसे वा कर गए हैं ...........

मुहब्बत के आसन पर उसको बिठाया .....
सनम थे ,, हम उनको खुदा कर गए हैं ....

अलालत पर मेरी वो रसमन हैं आये ......
रसम अदाएगी उनकी ,,मेरी दवा कर गए हैं ................

भरे कान ऐसे रक़ीबों ने जाकर .........
बिना कुछ बताये खफा कर गए हैं ......


इब्तदा - शुरुवात ,,,
रक्सां - नाच ,,,
उलफत -प्यार ,,,
नग्में -गीत ,,,
इन्तेहाँ - हद ,सीमा ,,,,,
चश्मे-जवां -- जवानी की आँख खुलना ,,,,,
अलालत-बिमारी ,,,
रसमन - व्यवहार,, formality ,,
रसम - FORMALITY ,,व्यवहार,,,,
रक़ीबों - प्रेमिका के प्रेमी ,,,,

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