Thursday 10 May 2012

सावन ,,,

कोई बादल उड़ता हुआ सा जँगल में ,,
और गाँव में  काली घटा है छाई सी ,,

गुचे -गुचे हैं प्रकृति के रंग में डूबे ,,
पेड -पेड़ में है असली रंगत आई सी,,

यौवन सजा है नाज़ -नख़रे से दोशीज़ा का,,
अँगड़ाई में मासूमियत,,चाल है इठलाई सी,,

कोपल ,,नाज़ुक  पौधे लचकदार हुए ,,
धुप से तपे खेत भी हें संवलाई सी ,,, 

छोटे- छोटे बीज खिलने को फ़ूटे ,,
सवेरे अँधेरे की बौछरों की चौंकाई  सी,,

सारे जहां में समाया है बारिश का आलम ,,
कोई अंगड़ाई ले जैसे ,,शरमाई सी,,

बह रही नदियां  सावन में यौवन की तरह ,,
कोयल भी गाती है ,,मौसम की तड़पाई सी,,

बादलों के पर्दों से झांकती है  धूप ,,
मुँह अँधेरे में उठे बच्चे की आँखें मिच-मिचाई  सी,,

मुझे घर में रखना साजन भीगो ना देना ,,
भीगे बदन में लगती है सकुचाई सी,, 

 


1 comment:

  1. this is a poem for ""savan "" ...which is compared to a young girl,, a child ,, in many ways ,,,how useful it is for everyone ,,

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