Monday 21 May 2012

मेरी लिखा  नया   छत्तीसगढी व्यंग्य   पेश करना चाहूँगी

रोड मा बइठे भंईसा ..........अऊ विधान सभा मा बइठे नेता मन ...
कई जुआर ऐके सरी लागथें ...

गाडी कतका पें -पूं करए ..
भईसा हा टरए नहीं ....
अऊ ऐ नेता मन कतको बुढाहीं ....
कुर्सी के मोह ला छोड़एँ नहीं ...

बईठे हे बबा कस बीच रोड मा ....
पूँछि ला हीलावत हे ...
माँखी ला उड़ावत हे ....

गाड़ी वाला बिचारा पें -पूं करत हे ....
भईंसा के मुडि ओला देक्खे टरत हे।......

मोर बर नइ बनाएव कोनो आवास ....
मोरो बर बनावौउ कोनो निवास ....
जब तक नाहिं बनाहू ...
मैं ट्रेफिक के करहूँ सत्या -नास .....

जइसे मोर मालिक मोला खवा -पिआ के ....
मोर दूध ला दूहत हे ,,,
वईसने नेता मन जनता के कमई ला ....
अपन समझ के चूहत हे ....
मोला तो खाए बार मालिक चारा दे दिही ...
फेर जनता के मेहनत के कमई ला .......
नेता मन भईंसा बन चरत हें .........

2 comments:

  1. आपके व्यंग्य के बान गजब चोक्खी हे.....
    बहुतेच सुघ्घर लागिस आपके विचार!

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  2. bahut bahut dhanyawaad ..... aabhar चारीचुगली Ji

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