Friday 29 June 2012








चाक जो दिल को लगे ,, इसकी दवा रखते हैं  ....
ज़ख्म खा कर भी लबो-गुल को सजा रखते हैं....

क्या पता कैसे बसाया है  चमन को हमने ...
की खिज़ाओं को लुटा कर बादे-सबा रखते है.....

प्यार करना तो बुरा ही है हमेशा से यूँ ...
प्यार को सब से छुपा , दिल में दबा रखते हैं...


हसरतें अब भी दिलो -जाँ से तुझे मिलने की....
हम फ़िक्रो- ख्यालों कि  यादों  में सदा रखते हैं ...


ना गिनो हमको मुलाजिम में कि पथराये दिल से ..... 
हम मुलाज़िम हैं मगर इतनी अना रखते है....

3 comments:

  1. क्या पता कैसे बसाया है चमन को हमने ...
    की खिज़ाओं को लुटा कर बादे-सबा रखते है.--बहुत खूब

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