Wednesday 20 June 2012

जल उठे  थे  बुझ  के  हम  ;शमा -ए -लौ  से  प्यार  की  ;
 फिर तेरी  हर  एक  झलक , पे  नज़रों  को  झुका   जाना  ;

 गर  कही  जो  चल  पड़े ; तेरे  बुलाने  पे  सनम  ;
वो  तेरा  मंजिल -ए –इश्क , से  वापस   को  बुला  जाना  ;

कई  असर  चलती  रही , कूचा -ए -गुल  में  यार  की  ;
वो  तेरा  मुझको  दीदार -ए  –तर  को   तरसा  जाना  ;

गर  कहीं   तुम  मिल  गए  किस्मत  सराहेंगे  कसम  ;
वो  तेरा  खा  कर  कसम  , हर  कसम  को  झुठला  जाना  ;

रात  की  खामोशियाँ  ,हमको  सताती  है  "महक " ;
तेरी  याद  से  रोज़ -रोज़  , दिल  का  यूँ   धड़का   जाना  ;

 मेरी  चाहत  का  सिला  क्या  देंगी  तेरी  तल्खियाँ   ;
वो  तेरा  हर  मोड़  पर , दिल  का  बहला  जाना  ;

देख  कर  हम   लुट  गए  , तेरे  प्यार  की  रुसवाइयां  ;
फिर  कज़ा  के  वक़्त  पर  , चेहरे  का  मुरझा  जाना  ;

2 comments:

  1. सुन्दर रचना......खूबसूरत एहसास ..... अच्छे खयालात को खूब कलमबंद किया है आपने .... वाह बहुत उम्दा

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    1. zarranawazi ke liye bahut bahut shukriya ,.... @hadi javed sahab ....

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