वो राहे गुज़र पे मिलता है मुझको ,
कभी मिलता भी नहीं ,
मेरे अकेलेपन पर हँसता है कभी ,
कभी हँसता भी नहीं ,
सूरज की धूप तो खिली है आंगन में ,
अँधेरा क्यों है मेरे मन में ,
वो बसता है इस दिल की बस्ती में ,
कभी बसता भी नहीं ,
मैं सारा हाल -ऐ -दिल कह दूँ उसको ,
वो अपना हाल कभी बताता है ,
कभी बताता भी नहीं ,
कभी मिलता भी नहीं ,
मेरे अकेलेपन पर हँसता है कभी ,
कभी हँसता भी नहीं ,
सूरज की धूप तो खिली है आंगन में ,
अँधेरा क्यों है मेरे मन में ,
वो बसता है इस दिल की बस्ती में ,
कभी बसता भी नहीं ,
मैं सारा हाल -ऐ -दिल कह दूँ उसको ,
वो अपना हाल कभी बताता है ,
कभी बताता भी नहीं ,
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