दफ्तर में चिड़िया
दफ्तर में फाइलों की सर- सराहट,
और टाइप की खट - खट
के बावजूद
दफ्तर का सा सन्नाटा
दफ्तर में गश्त करती
साहेब की एक जोड़ी आँखें
चुभ रही हर एक की डेस्क पर
दूर सड़क पर से आती
'इन्कलाब जिंदाबाद '
को अनसुना कर
बाबू लोग
सरका रहे हैं फ़ाइलें
पुरानी फाइलों के बीच में
चिड़िया का घर
बहार से अभी अभी लौटी
चिड़िया चहचहाती है
अपने चिड़िया बच्चों को
बाहर का हाल सुनाती है ,
बताती है ,
सुनना चाहते है
बाबू लोग भी
पर साहेब का डर ,
दफ्तर में एक दम सन्नाटा ,
खट -खट और सर सराहट भी चुप ,
गूंजती है केवल 'चह -चह ',
घोर अनुशाशन - हीनता ,!
रूल से भी नहीं ,
डरती है चिड़िया ,
साहेब की 'हिश -हिश '
से भी बेपरवाह ,
चिड़िया खूब पदोती है ,
खिसिया जाते है साहेब भी ,
बाबू लोग ,
मुंह छुपा कर हँसते हैं ,
जुलुस की आवाज़
खिडकियों के कांच तोड़कर ,
घुस आती है दफ्तर में ,
'फुर्रर्रर्र ,,,,,,र ,,र ,S,S'
दफ्तर से बाहर ,
चिड़िया भी शामिल हो जाती है
जुलुस में ,
तमाम बाबू लोग
खिडकियों से देखते हैं ,
जुलुस को जाते हुए ,
दफ्तर में फाइलों की सर- सराहट,
और टाइप की खट - खट
के बावजूद
दफ्तर का सा सन्नाटा
दफ्तर में गश्त करती
साहेब की एक जोड़ी आँखें
चुभ रही हर एक की डेस्क पर
दूर सड़क पर से आती
'इन्कलाब जिंदाबाद '
को अनसुना कर
बाबू लोग
सरका रहे हैं फ़ाइलें
पुरानी फाइलों के बीच में
चिड़िया का घर
बहार से अभी अभी लौटी
चिड़िया चहचहाती है
अपने चिड़िया बच्चों को
बाहर का हाल सुनाती है ,
बताती है ,
सुनना चाहते है
बाबू लोग भी
पर साहेब का डर ,
दफ्तर में एक दम सन्नाटा ,
खट -खट और सर सराहट भी चुप ,
गूंजती है केवल 'चह -चह ',
घोर अनुशाशन - हीनता ,!
रूल से भी नहीं ,
डरती है चिड़िया ,
साहेब की 'हिश -हिश '
से भी बेपरवाह ,
चिड़िया खूब पदोती है ,
खिसिया जाते है साहेब भी ,
बाबू लोग ,
मुंह छुपा कर हँसते हैं ,
जुलुस की आवाज़
खिडकियों के कांच तोड़कर ,
घुस आती है दफ्तर में ,
'फुर्रर्रर्र ,,,,,,र ,,र ,S,S'
दफ्तर से बाहर ,
चिड़िया भी शामिल हो जाती है
जुलुस में ,
तमाम बाबू लोग
खिडकियों से देखते हैं ,
जुलुस को जाते हुए ,
nice one...
ReplyDeletekya baat hai ........very nice poem.
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