वह चिंगारी
छिन भर में जो,
फूंक डालती है
सारा का सारा जंगल ,
कतई नहीं जानती की,
ज़मीन की बंजरता,
सूरज की तपिश,
और आँधी तूफ़ान के.
थपेड़ों के ख़िलाफ़,
लगातार संघर्ष करता हुआ,
एक नन्हा सा अँकुआ
कैसे बनता है,
एक छायादार,
विशाल वृक्ष,
होती है वह,
बड़ी जटिल प्रक्रिया,
ठीक उसी तरह ,
जैसे किसी,
फूल सी बच्ची का,,
पूरी की पूरी तरह,
तीसरी दुनिया की,
हितैषी ,,,पक्षधर बन जाना,
और माँ बन जाना,,,,
सुन्दर अभिव्यक्ति, निरंतर रहे.
ReplyDeleteshukriya संजीव ji......... prayas jaari rahega
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