बच्चों को सुनाते हुए कहानी रात में ..
अपना बचपन भी गुज़ारा उन जज़्बात में...
वो माँ की लोरी ... नानी-दादी की कहानी....
अब सब ख गयी है बडेपन के हालात में..
पापा की कहानी के गणेश -कृष्ण -राम ..
अब बँटने लगे कौम और ज़ात में .....
माँ के बनाये के चीले - पोहे की जगह ..
अब पिज्जा , चाउमिन , बर्गर है हाथ में ....
बचपन में लगता इश्वर तस्वीर निकालें हमारी. ..
हर बार कड़कती बिजली की घात में...
अब बिजली गिरती है धरती पर...
पर व पानी नहीं बरसता बरसात में ...
कागज़ की थी नाव तो थी अपनी ....
अब तो लेखा -जोखा लिखते है कागज़ात में.....
बचपन के संगी -साथी छुट गए सब अपने ...
सारा बचपन खो गया आज के खयालात में....
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